खुद को जाना तुमसे
तुमसे मिलकर जाना
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण
इस मिट्टी भीतर के
लोहा था प्रबल
तुम्हारे चुम्बकत्व से पहचाना
घुलनशीलता तो तुममे थी
मेरा नमक तो चट्टान था
भीतर जो स्पंदन था
वो प्रेम-रूप है
तुमसे मिलकर जाना!एक ऐसा अहसास जो कभी ख़त्म नहीं होता .........
अब, जबकि
हमारे प्रेम-रात्री का
कृष्ण पक्ष है
मैं खुद को खोने से पहले
खो देना चाहती थी
तुम्हें और तुम्हारे प्रेम-पत्र
घर के किसी कोने में
छिपा दिया था उन्हें
जो वार्षिकोत्सव की खुदाइ में
पड़ ही जाते सामने
मन की अंतरतम गुफाओं में
बंद कर दिया था तुम्हें
पर वार कर ही देते
मेरे निहत्थे स्वप्न में
अब लगता है इन्हें खोने से पहले
खुद को खोना होगा ।